भविष्य की ओर - निदेशक की कलम से

शैक्षिक संगठन अत्यंत विशिष्ट प्रकार के सामाजिक संस्थान हैं - वे एकमात्र उद्देश्य व बहु परिप्रेक्ष्य युक्त सत्वों के विचित्र मिश्रण होते हैं। इस प्रकार के संस्थान प्रायः विशिष्ट उद्देश्य युक्त उन्नत शिक्षण के साथ-साथ विभिन्न विचारों, मतों व सिद्धांतों के संगम-स्थल माने जाते हैं। उन्नत अनुसंधान के राष्ट्रीय संस्थान के रूप में भारतीय भाषा संस्थान में इन दोनों प्रकारों की विशेषताएँ अंतर्निहित हैं। संस्थान वास्तव में भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के माध्यमिक व उच्च शिक्षा विभाग के बहुउपयोगी अवयव के रूप में निम्नलिखित कार्य संपादित करता है-


  • समकक्षी संस्थानों को अपने अनुसंधान के परिणाम वितरित व समावेशित करना.
  • विश्वविद्यालयों एवं संस्थानों में अनुसंधान व विकास के इन प्रयासों को उपलब्ध जनशक्ति प्रदान
  • भाषा शास्त्र के विभिन्न प्रकार के उन विचारों, सिद्धांतों एवं पद्धतियों का संचय करना जो प्रायः विरोधात्मक प्रतीत होते हैं किंतु प्रत्येक की अपनी विरासत एवं महत्ता है।


मुझे दृढ़ विश्वास है कि शैक्षणिक संस्थान अपने समाज में अंतःस्थापित होने चाहिएँ। यद्यपि विश्वविद्यालयों की स्थापना मध्यकालीन युग में सिर्फ़ कुछ व्यवसायों में ज्ञान व प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए की गई थी, 19वीं शताब्दी तक वे नवीन ज्ञान के रचयिता बन चुके थे एवं मूलभूत अनुसंधान करने लगे थे। आधुनिक समाज में शैक्षणिक निकाय ज्ञान के सृजन एवं वितरण की जटिल प्रक्रिया में सर्वाधिक महत्वपूर्ण सामाजिक संस्थान बन चुके हैं, अतः वे हमारे समाज के केंद्र में व्यवस्थित हैं। इन संस्थानों ने समाज में एक राजनीतिक कार्य का दायित्व भी लिया है जिसमें वे प्रायः सामाजिक-राजनीतिक विचारों के केंद्रों के रुप में सेवारत हैं एवं उनको प्रशिक्षण प्रदान करते हैं जो अंततः सामाजिक, राजनीतिक व साहित्यिक संभ्रांत वर्ग के सदस्य बनते हैं।

खरोष्ठी पांडुलिपि के पृष्ठ

उच्च शिक्षा की राजनीतिक अर्थव्यवस्था यह दर्शाती है कि हमारी प्रणाली को आधुनिक बनाना वर्तमान काल की एक मुख्य प्राथमिकता है जो दुर्भाग्यवश शहरीकरण की ओर ले जाता है। इस कारण मध्यम वर्ग में तीव्र वृद्धि हुई है एवं उनकी उर्ध्वगामी गतिशीलता के मार्गों को विस्तारित करने की इच्छा प्रबल हुई है। जैसे ही नवीन शहरी मध्यम वर्ग की क्षमता में वृद्धि हुई उन्होंने शैक्षिक सुधार को प्राथमिकता दी जिसके कारण पिछले कुछ दशकों में मूलभूत व माध्यमिक शिक्षा समर्थ वर्गों के बीच विकसित हुई है। जैसे ही नवीन शहरी मध्यम वर्ग की क्षमता में वृद्धि हुई उन्होंने शैक्षिक सुधार को प्राथमिकता दी जिसके कारण पिछले कुछ दशकों में मूलभूत व माध्यमिक शिक्षा समर्थ वर्गों के बीच विकसित हुई है। उनकी संख्या में वृद्धि के साथ ही उच्च शिक्षा के योग्य एवं इच्छुक छात्रों की आपूर्ति भी बढ़ गई है। अंततः इस बढ़ती हुई माँग ने सभी सरकारों पर उन्नत शिक्षा के सभी संस्थानों को विस्तारित करने के लिए दबाव डाला। लेकिन ये संस्थान अपने उत्थान के लिए आम आदमी के ऋणी हैं इसका आभास बहुत कम है एवं इसलिए अधिकाधिक तरीकों से उनके कल्याण हेतु योगदान आवश्यक है। भारतीय भाषा संस्थान ने 80 जनजातीय भाषाओं सहित 118 भारतीय भाषाओं के पुरालेखीकरण द्वारा हमारे अल्पज्ञात भाषाई परंपरा के संरक्षण, संवर्धन एवं प्रलेखीकरण हेतु विशेष प्रयत्न किए हैं जो इसी दिशा की ओर एक कदम है। राष्ट्रीय सामाजिक-सांस्कृतिक एवं आर्थिक विकास की विस्तृत आवश्यकताओं के लिए उच्च शिक्षा का उपयोग वर्तमान समय का लक्ष्य होना चाहिए।.